श्रावण माह में आने वाला प्रमुख त्यौंहार है नाग पंचमी , इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है ।हिंदू धर्म में कण कण में ईश्वर को देखा गया है , वो पहाड़ हो या नदियाँ, वृक्ष हो या जीव-जंतु ,इसी गणना में नाग देवता को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है और नाग कैसे भगवान विष्णु ,भगवान शिव और भगवान कृष्ण की लीला से जुड़े हैं इस लेख में विस्तार से जानेंगे ।

नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है
नाग पंचमी के त्यौंहार से यूँ तो कई कहानियाँ जुड़ी है लेकिन महाभारत काल की घटना को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है , महाभारत काल में राजा परीक्षित को तक्षक ने डस लिया था और उसी कारण राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी । राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने सर्प यज्ञ किया , जिससे सभी नाग और सर्प यज्ञ में गिर गिरकर जलने लगे , तब आस्तिक मुनि ने जनमेजय को समझाया । आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने यज्ञ रोक दिया था , आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की पंचमी के दिन नागों की रक्षा की थी इसलिए हर श्रावण मास की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है ।
* ऐसी मान्यता है इस दिन नाग देवता को दूध चढ़ाना शुभ होता है।
* इस दिन खेत में हल नहीं चलाना चाहिए ऐसा माना जाता है की आज के दिन हल चलाने से नागों को कष्ट होता है ।
* इस दिन दूध का सेवन भी नहीं करना चाहिए ।

महादेव क्यूँ रखते हैं गले में सर्प
महादेव के गले में जो नाग है वह वासुकि नाग कहलाता है , जिस समय समुद्र मंथन हुआ था तब वासुकि नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था , जिससे वासुकि को बहुत कष्ट हुआ था , इसके बाद जब समुद्र मंथन से भयंकर विष निकला था तो महादेव उसे पी गये लेकिन ,जो कुछ छींटे नीचे गिरे उन्हें सर्पों और नागों ने धारण कर लिया , इसलिए भगवान शिव को नाग बहुत प्रिय है ।
कौन है सब नागों को जन्म देने वाली माता ?
शास्त्रों के अनुसार दक्ष प्रजापति की कन्या ,क़द्रू का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ था। महर्षि कश्यप ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान माँगने को कहा , तब क़द्रू ने महर्षि कश्यप से शक्तिशाली नागों की माता बनने का वरदान माँगा, इसी वरदान के कारण उन्होंने नागों को जन्म दिया ,और क़द्रू नागमाता क़द्रू कहलाई , उनके सभी पुत्रों में सबसे बड़े शेष नाग हैं।
शेष नाग ने भगवान विष्णु की बहुत तपस्या की और भगवान के परम भक्त बन गये, इसलिए भगवान विष्णु सदा शेष शैया पर विश्राम करते हैं ।

कालिया नाग
भगवान कृष्ण की बाल लीला के समय यमुना नदी में कालिया नामक नाग रहता था , जिसके कारण यमुना नदी का जल विषाक्त हो जाता था , वृंदावन वासियों की इस समस्या से मुक्त करने के लिए भगवान कृष्ण ने कालिया नाग से युद्ध किया और उसे परास्त किया। कालिया नाग ने अपनी हार स्वीकार कर ली ।भगवान कृष्ण ने उसे वृंदावन से दूर जाने का आदेश दिया और श्राप दिया की वह जहाँ पीछे मुड़कर देखेगा वहीं पत्थर का बन जाएगा और ऐसा ही हुआ, वृंदावन से क़रीब 20 किमी दूर मथुरा के जेत नामक स्थान पर वह पत्थर बन गया, जहाँ आज कालिया नाग की पूजा की जाती है ।
अंग्रेजों ने की थी कालिया नाग के छान बीन की कोशिश
इतिहास में ऐसे प्रमाण मिलते हैं की अंग्रेजों ने कालिया नाग के पत्थर के आस पास खुदाई करने की कोशिश की थी , लेकिन अंत में उन्हें हार माननी पड़ी जब वो पत्थर नहीं उखाड़ सके तो उन्होंने कालिया नाग के पत्थर पर गोलियाँ चलाई जिसके प्रमाण मिलते हैं ।
इस तरह अलग अलग क्षेत्रों में अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार कई कहानियाँ प्रचलित है । ऐसे ही रोचक जानकारियों के लिए जुड़े रहें bhavinews के साथ।